कर्णवास का सत्संग/ Karnvas ka Satsang

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कर्णवास का सत्संग

कर्णवास,उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले में डिबाई के निकट गंगा तट पर स्थित एक ऐतिहासिक ग्राम है। यह प्राचीन भृगु-क्षेत्र माना गया है जहाँ कल्याणी देवी और कर्ण शिला दर्शनीय तीर्थ हैं। अलीगढ-वरेली रेलमार्ग से समीप ही स्थित राजघाट रेलवे स्टेशन पर उतर कर यहाँ पहुंचा जा सकता है।

महाभारत काल के कर्ण का इस स्थान से सम्बन्ध बताया जाता है, जिसका नामकरण महाभारत के नायक कर्ण के नाम पर किया गया है। राजा कर्ण परोपकार के लिए काफी प्रसिद्ध थे, इसलिए उन्हें ‘दानवीर कर्ण’ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कर्ण ने उस समय हर दिन 50 किग्रा सोना दान किया करते थे। पर्यटक यहां महाभारत काल के देवी कल्याणी मंदिर भी घूम सकते हैं। कर्णवास बुलंदशहर से ज्यादा दूर नहीं हैं ।

यहॉ पर श्री सेठ जी केे द्वारा दिये गये प्रवचनों को संकलित कर एक पुस्तक के रुप मे प्रकासित किया जा रहा है।

Description

कर्णवास का सत्संग

कर्णवास,उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले में डिबाई के निकट गंगा तट पर स्थित एक ऐतिहासिक ग्राम है। यह प्राचीन भृगु-क्षेत्र माना गया है जहाँ कल्याणी देवी और कर्ण शिला दर्शनीय तीर्थ हैं। अलीगढ-वरेली रेलमार्ग से समीप ही स्थित राजघाट रेलवे स्टेशन पर उतर कर यहाँ पहुंचा जा सकता है।

महाभारत काल के कर्ण का इस स्थान से सम्बन्ध बताया जाता है, जिसका नामकरण महाभारत के नायक कर्ण के नाम पर किया गया है। राजा कर्ण परोपकार के लिए काफी प्रसिद्ध थे, इसलिए उन्हें ‘दानवीर कर्ण’ के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कर्ण ने उस समय हर दिन 50 किग्रा सोना दान किया करते थे। पर्यटक यहां महाभारत काल के देवी कल्याणी मंदिर भी घूम सकते हैं। कर्णवास बुलंदशहर से ज्यादा दूर नहीं हैं ।

यहॉ पर श्री सेठ जी केे द्वारा दिये गये प्रवचनों को संकलित कर एक पुस्तक के रुप मे प्रकासित किया जा रहा है।

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