Some exemplary characters of Mahabharata\महाभारत के कुछ अनुकरणीय पात्र

We are happy to present this booklet in the hands of our readers. It contains ten articles in all. The first article Sri Krishna is a composition of Nitya Lilalina Sri Hanuman Prasad Poddar and the rest of nine articles are composed by Brahmalina Sri Jaydayal Goyandka. In these articles some highly educative incidents and the character sketches of important personages of Mahabharata are presented.

We hope that readers will receive the book cordially as usual and get spiritually benefited

Continue Reading Some exemplary characters of Mahabharata\महाभारत के कुछ अनुकरणीय पात्र

महाभारत के प्रमुख पात्र/ Mahabharat ke pramukh patra

भगवान् श्रीकृष्ण, धर्मराज युधिष्ठर, महर्षि वेदव्यास आदि दस पात्रों के अनुकरणीय जीवन-चरित्र का अद्भुत चित्रण।

पुस्तक महाभारत के प्रमुख पत्र-बच्चों की पुस्तक- चित्र कथा-गीता प्रेस, गोरखपुर-वृंदावन रसिक वाणी बहुत ही उत्कृष्ट/कीमती पुस्तक जो व्यवस्थित रूप से लिखी गई है। ज्ञान की एक बहुत ही अनोखी और व्यावहारिक व्यवस्था। प्रत्येक इच्छुक और ईमानदार साधकों के लिए यह पुस्तक बहुत व्यापक रूप देती है। लेखन सघन है। यह पुस्तक अच्छी तरह से सोची-समझी, लिखित और विषय-वस्तु की समझ के साथ विकसित की गई है। इतनी अंतर्दृष्टिपूर्ण पुस्तक! अवश्य पढ़ें।

Continue Reading महाभारत के प्रमुख पात्र/ Mahabharat ke pramukh patra

महाभारत के कुछ आदर्श पात्र/ Mahabharat ke kuch aadarsh paatra

इस पुस्तक में महाभारत के दस आदर्श पात्रों जैसे भगवान श्री कृष्ण, धर्मी व्यक्ति युधिष्ठिर, महर्षि वेद व्यास, का जीवन में अनुकरण करने का ग्राफिक चित्रण है। यह बुक बाइंडिंग पेपरबैक है। पुस्तक प्रकाशन वर्ष २००७ है। पुस्तक प्रकाशक गीता प्रेस-गोरखपुर है। प्रथम संस्करण पुस्तक। इस पुस्तक के पृष्ठों की संख्या 112 है।

Continue Reading महाभारत के कुछ आदर्श पात्र/ Mahabharat ke kuch aadarsh paatra

महाभारत हिन्दी अनुवादसहित – छः खण्ड/ Shri Maha bharat Hindi Anuvad Sahit- Set of 6 Books

महर्षि वेदव्यास रचित सभी खंडो को पंडित रामनारायण दत्त ने सरल भाषा में अनुवाद किया है जिसको यह प्रस्तुत किया है।

महाभारत आर्य-संस्कृति तथा भारतीय सनातनधर्मका एक अत्यन्त आदरणीय और महान प्रमुख ग्रन्थ है। यह अनन्त अमूल्य रत्नोंका अपार भण्डार है।

भगवान् वेदव्यास स्वयं कहते हैं कि ‘इस महाभारत में मैंने वेदोंके रहस्य और विस्तार, उपनिषदों के सम्पूर्ण सार, इतिहास-पुराणोंके उन्मेष और निमेष,चातुर्वर्ण्य के विधान, पुराणों के आशय, ग्रह-नक्षत्र-तारा आदिके परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत ( अन्तर्यामीकी महिमा), तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रोंका भी वर्णन किया है।’

अतएव महाभारत महाकाव्य है, गूढ़ार्थमय ज्ञान-विज्ञान शास्त्र है, धर्मग्रन्थ है, राजनीतिक दर्शन है, निष्काम कर्मयोग-दर्शन है, भक्ति-शास्त्र है, अध्यात्म शास्त्र है, आर्यजातिका इतिहास है और सर्वार्थसाधक तथा सर्वशास्त्र संग्रह है। सबसे अधिक महत्त्व की बात तो यह है कि इसमें एक, अद्वितीय, सर्वज्ञ, सर्वशक्ति मान्, सर्वलोकमहेश्वर, परमयोगेश्वर, अचिन्त्यानन्त गुणगणसम्पन्न, सृष्टि-स्थिति प्रलयकारी, विचित्र लीलाविहारी, भक्त-भक्तिमान्, भक्त-सर्वस्व, निखिलरसामृतसिन्धु, अनन्तप्रेमाधार, प्रेमधनविग्रह, सच्चिदानन्दघन, वासुदेव भगवान श्रीकृष्णके गुण-गौरवका मधुर गान है। इसकी महिमा अपार है। औपनिषद ऋषिने भी इतिहास-पुराणको पञ्चम वेद बताकर महाभारतकी सर्वोपरि महत्ता स्वीकार की है।

इस महाभारतके हिंदीमें कई अनुवाद इससे पहले प्रकाशित हो चुके हैं, परंतु इस समय संस्कृत मूल तथा हिंदी अनुवादसहित सम्पूर्ण ग्रन्थ शायद उपलब्ध नहीं है। मूल तथा हिंदी अनुवाद पृथक्-पृथक् तो प्राप्त होते हैं, परंतु उनका मूल्य बहुत है।

इसीलिये महाभारतका महत्त्व समझनेवाले प्रेमी तथा उदाराशय सज्जनोंका बहुत दिनों से यह आग्रह था कि गीताप्रेसके द्वारा मूल संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद सहित सम्पूर्ण महाभारत प्रकाशित किया जाय। इसके लिये बहुत दिनोंसे प्रयास भी चल रहा था। कई बार योजनाएँ भी बनायी गयीं: परंतु सत्कार्य प्रारम्भका पुण्य दिवस तभी प्राप्त होता है, जब भगवत्कृपासे वैसा अवसर प्राप्त हो जाता है।

बहुत दिनोंके प्रयत्न के पश्चात् अब वह सुअवसर आया है और महाभारत का यह प्रथम खण्ड आपके हाथोंमें उपस्थित है। महाभारतमें आया है कि भगवान् व्यासदेवने साठ लाख श्लोकोंकी एक महाभारत-संहिताका निर्माण किया था। उस समय महान् ग्रन्थके चार छोटे बड़े संस्करण थे। इनमें पहला तीस लाख श्लोकोंका था, जिसे नारदजीने देवलोकमें देवताओंको सुनाया था। दूसरा पंद्रह लाख श्लोकोंका था, जिसको देवल और असित ऋषिने पितृलोकमें पितृगणोंको सुनाया था। तीसरा जो चौदह लाख श्लोकोंका था, शुकदेवजीके द्वारा गन्धर्वो, यक्षों आदिको सुनाया गया और शेष एक लाख इलोकोंके चौथे संस्करणका प्रचार मनुष्य लोक में हुआ |

महाभारत भारतीय संस्कृति का, आर्य सनातन-धर्म का अद्भुत महाग्रंथ है। इसे पंचम वेद भी कहा जाता है। इस महाग्रंथ में उपनिषदों का सार, इतिहास, पुराणों का उन्मेष, निमेष, चतुर्वर्ण का विधान, पुराणों का आशय, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि का परिमाण, तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, समुद्रों तथा वनों का वर्णन होने के कारण यह अनन्त गूढ़ गुह्य रत्नों का भण्डार है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें निखिल रसामृत-सिन्धु, अनन्त प्रेमाधार भगवान् श्रीकृष्ण के गुण-गौरव का गान है। छः खण्डों में प्रकाशित यह ग्रन्थ-रत्न हिन्दू संस्कृति के अध्येताओं-हेतु मननीय और संग्रहणीय है। सचित्र, सजिल्द।

Continue Reading महाभारत हिन्दी अनुवादसहित – छः खण्ड/ Shri Maha bharat Hindi Anuvad Sahit- Set of 6 Books

भक्तों की गाथा ( जैमिनीकृत महाभारत )/ Bhakton ki Gatha -Jaimini Mahabharat

महाभारत में लिखा है कि वेदव्यास ने जैमिनि को महाभारत पढ़ाया। इन्होंने अन्य गुरुभाइयों की तरह अपनी एक अलग “संहिता” बनाई (महाभारत, आदिपर्व, 763। 89-90) जिसे व्यास ने मान्यता दी। यह पर्व 68 अध्यायों में पूर्ण है। इस पर्व में जैमिनि ने जनमेजय से युधिष्ठिर के अश्वमेधयज्ञ का तथा अन्य धार्मिक बातों का सविस्तार वर्णन किया है। किया जाता है कि वेदव्यास के मुख से महाभारत की कथाओं को सुनकर उनके सुमंत, जैमिनि, पैल तथा शुक इन चार शिष्यों ने अपनी महाभारत संहिता की रचना की। इनमें से जैमिनि का एकमात्र “अश्वमेघ पर्व” बच गया है और सभी लुप्त हो गए।

इस प्रकार वेदव्यास के साथ जैमिनि का घनिष्ठ संबंध रखना प्रमाणित होता है। अतएव ये दोनों एक ही काल में रहे होंगे, ऐसा सिद्धांत मानने में दोष नहीं मालूम होता। पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार जैमिनि ईसा से आठ शतक पूर्व ही रहे होंगे, किंतु भारतीय विद्वानों के अनुसार ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व जैमिनि का समय कहने में कोई विशेष आपत्ति नहीं मालूम होती।

जैमिनी मुनि के मन में महाभारत और श्रीकृष्ण को लेकर भ्रम उत्पन्न हो गया। वे उसके निवारण हेतु मार्कण्डेय ऋषि के पास गए। उन्होंने जैमिनी मुनि को महर्षि शमीक के आश्रम रह रहे पिंगाक्ष, निवोध, सुपुत्र और सुमुख नामक ४ पक्षियों के पास जाने को कहा। उधर उन पक्षियों ने ऋषि शमीक से ये पूछा कि वे चारो मनुष्यों की भाषा कैसे बोल लेते हैं। तब शमीक ऋषि ने उन्हें उनके पिछले जन्म की कथा सुनाई।

शमीक ऋषि ने बताया कि प्राचीनकाल में विपुल नामक एक तपस्वी ऋषि थे जिनके सुकृत और तुंबुर नाम के दो पुत्र हुए। तुम चारों ही पूर्वजन्म में सुकृत के पुत्र हुए। एक बार देवराज इंद्र पक्षी के रूप में सुकृत के आश्रम आये और उनसे भोजन हेतु मनुष्य का मांस मांगा। तब तुम्हारे पिता सुकृत ने तुम लोगों को आदेश दिया कि पितृऋण चुकाने हेतु तुमलोग इंद्र का आहार बनो। किन्तु मृत्यु के भय से तुम लोगों ने उनकी आज्ञा नहीं मानी। इससे क्रोध होकर तुम्हारे पिता ने तुम चारों को पक्षी रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया और स्वयं पक्षी का आहार बनने के लिए तैयार हो गए।

उनकी ऐसी दृढ इच्छाशक्ति देख कर इंद्र ने उन्हें दर्शन दिए और आशीर्वाद स्वरुप तुम लोगों को श्राप से मुक्ति का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि तुम लोग पक्षी रूप में ज्ञानी बनकर कुछ दिन विंध्याचल पर्वत की कंदरा में निवास करोगे। जिस दिन महर्षि जैमिनी तुम्हारे पास आकर अपनी शंकाओं का निवारण करने के लिए तुम लोगों से प्रार्थना करेंगे, तब तुम लोग अपने पिता के श्राप से मुक्त हो जाओगे। ऐसा कहकर देवराज इंद्र पुनः स्वर्गलोक चले गए। ये कथा सुनकर उन चारो पक्षियों ने महर्षि शमीक से शीघ्र विंध्याचल जाने की आज्ञा मांगी और फिर उनके आदेशानुसार विंध्याचल में जाकर निवास करने लगे।

इस कथा को सुनकर मार्कण्डेय मुनि ने जैमिनी ऋषि से कहा – “हे महामुने! यही कारण है कि मैंने आपको विंध्याचल पर्वत को जाने को कहा। वहाँ वे चारों पक्षी आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि आपके पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देकर वे चारों श्रापमुक्त हो जाये। इसीलिए आप यथाशीघ्र विंध्याचल की और प्रस्थान कीजिये।” महर्षि मार्कण्डेय की सहमति से जैमिनी ऋषि विंध्याचल पहुंचे और उन्होंने वहां उच्च स्वर में वेदों का पाठ करते पक्षियों को देखा। यह देख कर वे बड़े प्रसन्न हुए और फिर उन्होंने चारों से अलग-अलग ४ प्रश्न पूछे।

पिंगाक्ष से उन्होंने पूछा – “इस जगत के कर्ता-धर्ता भगवान ने मनुष्य का जन्म क्यों लिया?” तब पिंगाक्ष ने कहा – “हे महर्षि! कई बार प्रभु अपनी ही सृष्टि के बनाये नियम का पालन करने के लिए विवश होते हैं। इसी कारण पापियों का नाश करने के लिए और इस पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करने के लिए स्वयं नारायण ने श्रीकृष्ण के रूप में मानव अवतार लिया।”
निवोध से उन्होंने पूछा – “द्रौपदी पांच पतियों की पत्नी क्यों बनी?” तब निवोध ने कहा – “महामुने! द्रौपदी ने पिछले जन्म में महादेव से ऐसे पति की कामना की थी जो धर्म का चिह्न हो, बल में जिसकी कोई तुलना ना हो, जो सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो, संसार में उसके सामान कोई सुन्दर ना हो और जिसके सामान धैर्यवान कोई और ना हो। किसी भी एक व्यक्ति में ये सारे गुण नहीं हो सकते थे इसीलिए उसे पाँच पतियों से विवाह करना पड़ा क्यूंकि युधिष्ठिर धर्म का चिह्न थे, भीम का बल अपार था, अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, नकुल सर्वाधिक सुन्दर और सहदेव सबसे बड़े धैर्यधारी थे। सूर्यपुत्र कर्ण में ये सारे गुण अवश्य थे किन्तु उनमे एक अवगुण था कि वे अधर्मियों का साथ दे रहे थे।

Continue Reading भक्तों की गाथा ( जैमिनीकृत महाभारत )/ Bhakton ki Gatha -Jaimini Mahabharat

संक्षिप्त महाभारत /Sankshipt Mahabharat (part 1-2)

महाभारत ग्रंथ का आरम्भ निम्न श्लोक के साथ होता है:

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं चैव ततो जयमुदीरयेत्॥

परन्तु महाभारत के आदिपर्व में दिये वर्णन के अनुसार कई विद्वान इस ग्रंथ का आरम्भ “नारायणं नमस्कृत्य” से, तो कोई आस्तिक पर्व से और दूसरे विद्वान ब्राह्मण उपचिर वसु की कथा से इसका आरम्भ मानते हैं

यह महाकाव्य ‘जय संहिता’, ‘भारत’ और ‘महभारत’ इन तीन नामों से प्रसिद्ध हैं। वास्तव में वेदव्यास जी ने सबसे पहले 100000 श्लोकों के परिमाण के ‘भारत’ नामक ग्रंथ की रचना की थी, इसमें उन्होने भारतवंशियों के चरित्रों के साथ-साथ अन्य कई महान ऋषियो, चंद्रवंशी सुर्यवंशी राजाओं के उपख्यानो सहित कई अन्य धार्मिक उपख्यान भी डाले। इसके बाद व्यास जी ने 24000 श्लोकों का बिना किसी अन्य ऋषियो, चंद्रवंशी सुर्यवंशी राजाओं के उपख्यानो का केवल भारतवंशियों को केन्द्रित करके ‘भारत’ काव्य बनाया। इन दोनों रचनाओं में धर्म की अधर्म पर विजय होने के कारण इन्हें ‘जय’ भी कहा जाने लगा। महाभारत में एक कथा आती है कि जब देवताऔं ने तराजू के एक पासे में चारों “वेदों” को रखा और दूसरे पर ‘भारत ग्रंथ’ को रखा, तो ‘भारत ग्रंथ’ सभी वेदों की तुलना में सबसे अधिक भारी सिद्ध हुआ। अतः ‘भारत’ ग्रंथ की इस महत्ता (महानता) को देखकर देवताऔ और ऋषियों ने इसे ‘महाभारत’ नाम दिया और इस कथा के कारण मनुष्यों में भी यह काव्य ‘महाभारत’ के नाम से सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ।

Continue Reading संक्षिप्त महाभारत /Sankshipt Mahabharat (part 1-2)

मानव कल्याणके साधन\Manav Kalyanke sadhan

संसार में जितने भी सफल व्यक्ति अथवा महापुरुष हुए हैं; इसलिए नहीं कि वे अलौकिक प्रतिभा के धनी थे अथवा साधन-संपन्न थे; बल्कि इसलिए कि वे महान् व्यक्तित्व के स्वामी थे। विश्व में महापुरुषों और सफल व्यक्तियों की जीवनियाँ हमें बताती हैं कि सभी ने अपने व्यक्तित्व का विकास कर जीवन को अनुशासित किया और मानव-कल्याण का संदेश दिया।
महाभारत काल के एक अत्यंत गरीब व साधनहीन बालक एकलव्य में व्यक्तित्व निर्माण के सभी गुण मौजूद थे। उसमें सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी बनने की इतनी ललक थी कि वह अपनी सकारात्मक सोच के साथ अंधकार से प्रकाश की किरण का आभास करता हुआ एकाग्रचित्त और कड़े अम्यास के बलबूते पर ही जीवन के उद्देश्य तक पहुँचने में सफल हुआ था।
प्रस्तुत पुस्तक ‘महापुरुषों की शिक्षाप्रद कथाएँ’ में साहित्यकारों; राजनेताओं; दार्शनिकों; समाज-सुधारकों की प्रेरक कथाओं को समाहित किया गया है। ये कथाएँ मानवीय गुण; यथा परोपकार; सदाचार; सेवा; कर्मशीलता; धैर्य आदि का संचार करेंगी।
विश्वास है कि यह कथा-संकलन सभी पाठकों के जीवन में नई स्फूर्ति का संचार करते हुए उनमें आत्मविश्वास पैदा करेगा।

Continue Reading मानव कल्याणके साधन\Manav Kalyanke sadhan